Skip to content Skip to sidebar Skip to footer

Poetry on Women facing 40th Year of Their Lives

 

 

Despite being modern, up to date and fit, I have heard many women’s stories about dreading the 40th year of their lives. They build mountains of insecurities in their minds which are worthless. Recently I have also completed forty years of my life and believe me I am all up to live my life even more than ever before. I have a long list of dreams and adventures to be done. Hope they will get fulfilled one after another. For now enjoy this recent poetry.

चालीस को बहुत धकियाया, ठेला
किन्तु एक दिन ये आ ही गया
मेरे उनतालीस वर्षों की युवावस्था को खा ही गया

नहीं, अभी मैं जवान हूँ, कसी सुंदरता लिए
रहस्य यह कि दर्पण ने कुछ और दिखाना शुरू कर दिया है
जो मैंने स्वयं तक से छिपाना शुरू कर दिया है

क्या अब मैं बूढ़ी कहलाऊँगी
प्रशंसाओं का अब मैं कहाँ से खाऊँगी
मन की कोठरी में असुरक्षित सी बैठी
मैं सिसक रही हूँ

तभी अंधेरे में से एक प्रकाश की किरण उभरती है
जो मुझसे कहती है,
‘दरवाज़ा कोई कभी बंद नहीं होता,
सदा एक और नया खुलता है
अब तुममें वह कोमलता, वह आभा है
जो गत वर्षों के अनुभवों ने तुम्हें दी है
नकारात्मकता का यह नितांत झूठा विकल्प है
सत्य यह अब नई संभावनाओं युक्त जीवन का आरम्भ है
उठो और सकारात्मकता का दरवाज़ा खोलो
जो सपने अब तक तुमने केवल देखे हैं
उन्हें पूरा करने का ज़िम्मा लो
बीस, चालीस और साठ में बराबर का अंतराल है
तुम इसे कैसे समझो, यह तुम पर है, सापेक्ष है
बढ़ती उम्र स्त्री का स्वयं के ख़िलाफ षड़यंत्र है
क्या यह सहानुभूति बटोरने का यंत्र है?’

मुस्कराते हुए, प्रसन्नचित्त सी
मैं खोल सी बाहर आती हूँ
हाथ में नगाड़ा है, दुनिया को बताना है
मैं दरसुक़ून चालीस की हूँ.

Thanks for reading friends.

Peace & Love

Medhavi 🙂

Leave a comment