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Remembering my father-in-law on his third death anniversary

आदरणीय पापा जी,

आज आपको गए तीन वर्ष हो गए. हर बार की तरह कल सुबह घर में हवन है एवं सभी साइट्स पर भण्डारा. मानव स्वभाव की विचित्रता पर हर दिन मुस्कुराती भी हूं एवं विचलित भी हो जाती हूं कि आख़िर क्यों जब व्यक्ति भौतिक जगत में होता है हम उसके सहज ज्ञान को, जीवन के उतारों-चढ़ावों के दौरान अर्जित प्रज्ञा को, जो वह नित दिन अपने आस-पास के लोगों में सहज ही अपने कथनों एवं कर्मों के माध्यम से बांटता रहता है, बस यूं ही जाने देते हैं. कभी उसकी कही बातों का मज़ाक बना कर, कभी खीसें निपोर कर तो कभी कुढ़ कर. और कैसे वही बातें उसके चले जाने पर प्रतिदिन हमारे अंतस पर आकर दस्तक देती हैं, कभी समस्याओं के समाधान सुझा जाती हैं, कभी चिंता के क्षणों में ‘सब ठीक हो जाएगा’ की ज्योति जला जाती हैं, और कभी बस यूं ही मुस्कुराने का अथवा हंस-हंस कर लोटपोट होने का सबब बन जाती हैं.  

इसी सन्दर्भ में आज आपकी कही कुछ बातें साझा करने जा रही हूं. 

  1. सास के रूप में पदोन्नति हो गई है, अब समझ आता है कि भला कौन बड़ा होना चाहता है. आख़िर कौन हमें सिखाता है कि बड़े हो जाने पर कैसे परिस्थितियों से निबटना है? कैसे जो हो उसे होने देना है? कब मौन गहना है? कब भीतर की पीड़ा को छिपा मुस्कुराते रहना है? एवं भीतर ही भीतर आपकी कही को याद कर हंसना है, ‘अरे, बड़े ऐसे ही नहीं बन जाते. कभी कढ़ाई में तले जाते बड़ों को देखना, वे तो वहां से निकल भागना चाहते हैं, यह कहते हुए कि हमें नहीं बनना बड़े…’
  2. बिटिया को विदा करना कितना कठिन होता है, यह आप बेटी के पिता न होते हुए भी जानते थे. तभी तो तीनों बहुओं को विदा करा कर लाते हुए आप भी रोए थे. अब जब मेरी बिटिया अर्थात आपकी लाड़ली पोती पराई हो गई है तब सहज ही आपके द्वारा गुनगुनाया जाने वाला वह गीत न केवल याद आता है अपितु उसका सार आज भावुक भी कर जाता है, ‘साडा चिड़ियां दा चम्बा वे, बाबुल असां उड़ जाणा…’
  3. राशन की दुकान, आटे-दाल का भाव, चावल, ड्राई-फ्रूट्स, सब्ज़ी-फल, यहां तक की ज़ेवर इत्यादि कहां से लेना है सब कुछ तो आप फिक्स कर गए थे, आज भी वहीं से आता है. आपको सब दुकानदार जानते हैं, बहुत से तो आपसे कभी नहीं मिले तब भी आपका सम्मान करते हैं. चलिए इसी सन्दर्भ में दिल्ली के मशहूर ‘सीताराम के छोले भठूरे’ का किस्सा पाठको को सुनाती हूं. पिछले वर्ष एक रविवार सबका छोले भठूरे खाने के दिल हुआ. आपके असिस्टैंट से पूछने पर उसने कहा, ‘मैम, आज मैं नहीं जा सकता किंतु उनका नंबर मेरे पास है आप उन्हें कॉल करके यदि बाऊजी का नाम लेंगीं तो वे पहचान जाएंगे’. मैंने वैसा ही किया एवं क्या पाठक सोच पाएंगे कि मुझे कैसी प्रतिक्रिया मिली? दूसरी ओर से ‘सीताराम छोले भठूरे’ के मालिक श्री प्राण कोहली ने फ़ोन उठाया, आपका नाम लेते ही वे लगातार दो मिनट तक आपके विषय में बोलते रहे, ‘बहन जी, बाऊजी तो हमारे बहुत अज़ीज़ थे जी, हमारे बड़े थे, बस आप समझो कि उनका बहुत आशीर्वाद हमारे ऊपर है’. श्री कोहली ने तुरंत एक घंटे के भीतर गरमागरम नाश्ता न केवल घर भिजवाया अपितु यह कहते हुए कोई चार्ज भी नहीं लिया कि आपने हमें सेवा का मौका दिया, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है. बस, आपको याद करते हुए मैं पुनः भाव-विभोर थी. प्राण कोहली जी को मेसेज भेजा, ‘नमस्कार अंकल जी, कल आपके जेस्चर से मैं और मेरे हसबैंड बेहद अभिभूत हुए. इतना स्वादिष्ट नाश्ता इतनी दूर से इतनी जल्दी हमारे घर पहुँच गया. पापा जी को वैसे तो मैं रोज़ ही याद करती हूँ. लेकिन कल उनकी, उनके व्यवहार की और भी ज़्यादा याद आई. घर के बड़े, छोटों के लिए कब-कब में रिश्ते बना जाते हैं, कि बच्चे जान ही नहीं पाते. सादर, डा मेधावी जैन एवं प्रवीन जैन

तब से आज तक जब भी छोले भठूरे खाने का दिल होता है प्राण अंकल को कॉल करती हूं एवं झटपट स्वादिष्ट नाश्ता हमारे घर पहुंच जाता है. और तो और बिटिया के मेहंदी के फंक्शन में प्राण अंकल ने अपना स्टॉल भी लगाया.

  1. उस दिन सुबह मम्मी और मैं आपको याद करते हुए जो हंसे कि क्या बताऊं! खाने-खिलाने के आप बेहद शौकीन थे. पराठा है तो न केवल वह आपके स्वादानुसार सिका होना चाहिए, उससे पहले उसका आटा भी आपके अनुसार गुन्दा होना चाहिए ताकि पराठा नरम बने. सब्ज़ी यदि आपकी पसंद की नहीं बनी तो आप खाना बनाने/परोसने वाले के सामने पराठा पानी में भिगोकर खाएंगे, यह कहते हुए कि मैं तो सादा हूं, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता… 

यह तो हम ही जानते हैं न कि उस वक्त हम पर क्या गुज़रती थी!   

  1. और हाँ, आपको यह भी बताना था कि आपकी इस बहू ने, जो सदा अपनी पढ़ाई में इस कदर व्यस्त रहती थी कि आपको उसकी चिंता रहती थी कि यह अपनी बेटी की शादी कैसे करेगी? सगन के लिफाफे कैसे बनाएगी? बाजार से ख़रीदारी कैसे करेगी, सफलतापूर्वक सारी ज़िम्मेदारी निभा ली है. आप सब कुछ सिखा कर जो गए थे. 

और इस प्रकार आदरणीय पापा जी आप हमारे बीच न होते हुए भी सदैव होते हो… 

आपकी तृतीय पुण्यतिथि पर आपको सादर प्रणाम. 

आपकी बेटी  

मेधावी     

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