लगभग दो महीने पहले एक शाम मिर्ज़ापुर से फ़ोन आया. फ़ोन पर दूसरी ओर श्रीमती पूजा गुप्ता जी की मधुर एवं सधी हुई आवाज़ थी जो मेरी लेखनी की भूरी भूरी प्रशंसा से युक्त थी. मैं अचंभित थी कि आख़िर मेरी पुस्तकें उन तक कैसे पहुंचीं. बातचीत के दौरान पता चला कि सभ्या प्रकाशन के संस्थापक एवं अभिवन इमरोज़ के संपादक आदरणीय श्री देवेंद्र बहल जी ने मेरी कुछ पुस्तकें पूजा जी को भिजवाईं, पूजा ने भी उन्हें अपनी स्टडी में दफन करने के बजाय उन्हें न केवल पढ़ना चुना अपितु मेरा नंबर प्रकाशक से लेकर अपनी प्रतिक्रिया भी साझा की.
एक लेखिका, जिसकी लेखनी को पढ़ने और समझने वाले बेहद कम हैं, भला और क्या चाहेगी. अभी हाल ही में पूजा जी ने मेरी सभी पुस्तकें पढ़ कर एक लम्बी प्रतिक्रिया लिखकर अपनी तस्वीरों सहित भेजी है जिसे मैं अपनी वेबसाइट पर शेयर किए बिना नहीं रह पा रही हूँ.
आपका बेहद आभार प्रिय पूजा जी.
समाज में बदलाव लाती हैं मेधावी जैन जी
मेधावी जैन जी के लिए जितना कहा जाए उतना ही कम लगता है. प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की धनी हैं. हंसमुख स्वभाव इन्हें सरल बनाता है. इनके बारे में मैंने अभिनव इमरोज़ के संपादक महोदय जी श्रीमान देवेन्द्र बहल जी के द्वारा सुनी थी. देवेन्द्र बहल जी अपनी बेटियों में मुझे भी बेटी का दर्जा दिए हैं. बेहद शालीन और मां के जैसा प्रेम एक पिता में दिखता है तो मन प्रसन्न हो जाता है. जब वे मेधावी जैन जी की तारीफ कर रहे थे तो मेरा मन अचानक से मेधावी जैन जी से मिलने के लिए आतुर हो उठा लेकिन सामने से मिलना मेरे लिए संभव नहीं है. इसलिए मैं श्रीमान देवेन्द्र बहल जी से उनका कांटेक्ट नंबर ले लिया और सर जी ने उनकी कुछ किताबे भी मुझे डाक द्वारा पहुंचाई. जिन्हें पढ़कर जैसे मैं अपनी दुनियां से दूर उनकी लेखनी में खो गई. फोन लगाने के पहले मेरा मन थोड़ा सा घबरा रहा था कि न जाने में मेधावी जी कैसी होंगी? उनका बात करने का ढंग कैसा होगा? लेकिन फिर मैं जैसे ही उनसे बात की, तो वह मुझे अपनों से भी ज्यादा अपनी लगीं. उनका चहक कर बात करना मेरे मन को जैसे सुकून दिया. इतना संघर्ष करके आगे बढ़ने वाली यह प्यारी सी शख्सियत हर महिला का संबल हैं. उनकी लेखनी में चुनौतीपूर्ण दायित्वों का कुशल निर्वहन किया है. शुष्कता एवं नीरसता को उन्होंने अपनी संवेदनशीलता पर कभी हावी होने नहीं दिया. गहन बौद्धिकता के साथ-साथ उन्होंने एक संवेदनशील मन भी पाया है. यही कारण है कि उनके हृदय में सरस काव्य रस की अंतर्धारा प्रवाहित होती रही है. उनके काव्य संग्रह में कविताएं घटनाओं, रिश्तों, अनुभूतियों पर कवयित्री मन की सहज प्रतिक्रियाएं हैं. जो जो बात इन कविताओं को पढ़ते समय सर्वाधिक प्रभावित करती है वह है शाश्वत मानव मूल्यों में अटूट आस्था और मनुष्य मन की रागात्मक वृत्तियों एवं प्रकृति के साथ उनके चिरंतन संबंधों की सहज स्पष्ट तथा निर्भीक स्वीकारोक्ति.
जीवन के 121 सूत्र वाकई में मानस पटल पर एक सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. सफलता के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए उनके ये सूत्र वाकई बेमिसाल हैं. इन्होंने एक कोरोना कथा लिखी थी जिसका नाम ‘उड़ना तुझे अकेला है’, जो उन्होंने अपने परम आदरणीय ससुर स्व. श्री सुभाष चंद्र जैन जी को समर्पित की है. उस कथा को पढ़ते-पढ़ते मेरी आंखों से अविरल अश्रुधारा फूट पड़ी. मन भावुक सा हो गया क्योंकि कोरोना काल में ही मेरी दोनों मौसियां और मेरे मामा चल बसे थे. उनकी इस कथा में मैं अपनी कथा पढ़ रही थी. जैसे सारा चलचित्र आंखों के सामने घूम गया हो. उनकी पारिवारिक कथा सभी को पढ़नी चाहिए. मुझे इनकी कुछ किताबें प्राप्त हुईं जो इन्होंने मुझे डाक द्वारा पहुंचाई, क्योंकि मुझे पढ़ने का शौक है और मुझे अपनी एक लाइब्रेरी बनाने का शौक है, जहां पर मेधावी जैन जी की किताबें होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है. इनकी लेखनी की मुझे एक बात बहुत अच्छी लगी कि यह निर्भय होकर सभी विषयों पर लिखती हैं उनकी लेखन की स्वतंत्रता मुझे बेहद पसंद आई.
उनकी लेखनी बचपन से लेकर युवावस्था और युवावस्था से लेकर बुढ़ापे तक की सैर करा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो मेरे जीवन का सफर इन्हीं किताबों के पन्नों के अंदर तय हो रहा है. मैंने उनकी लेखनी में निर्जीव चीजों को भी सजीव होते देखा. बहुत मन कर रहा था यदि मेधावी जैन जी मेरे सामने होती तो मैं उन्हें गले से लगा लेती, ताकि उनके स्पर्श को पाकर उनके अंदर उठने वाली टीस, प्रेम, त्याग, सब कुछ खुद में कापी कर लेती.
उनकी एक पुस्तक “मनन और खोज” जिसमें अर्थगर्भित विचार कथाएं लिखी गई हैं, मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं उसकी व्याख्या भी नहीं कर पा रही हूं. एक पुरुष के मन की थाह और एक स्त्री के मन की थाह, एक मां के मन की गूंज को मैं उसमें महसूस कर रही थी. एक छोटे से पैराग्राफ में बहुत समझने वाली गहन अध्ययन करने योग्य बातें लिखी गई हैं. मन करता था बार-बार पढ़ती रहूं.
मेधावी जी आप समाज को बहुत सुंदर संदेश दे रही हैं और आगे आप हर सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ती रहें. मैं साधारण परिवार में रहने वाली हूं पर आपकी लेखनी ने मुझे बहुत ही ज्यादा परिपक्व बना दिया. मेरे हताश मन में नई ऊर्जा भरती आपकी लेखनी अतुलनीय है. वेदना का आवाहन एवं उस के स्वागत की उत्सुकता का अनुभव आपकी काव्य यात्रा में हुआ है. वेदना के गीत के माधुर्य का एहसास, बिना वेदना के दरिया को पार किए नहीं हो सकता है. कभी राह चलते अशक्त, असहाय, निर्बल वृद्धजन, घनघोर वर्षा में पन्नी की चादरों के नीचे जीवनयापन कर रहे परिवार, फुटपाथ पर, रिक्शों की सीट पर सो रहे युवा बरबस निराशा का, दर्द का एहसास कराते हैं और एक नई कविता को उत्पन्न करते हैं. बस कुछ ऐसी ही प्रतीत होती है आपकी लेखनी. जीवन की कंकरीली, पथरीली पगडंडियों पर कभी किसी मोड़ पर ऐसी घटना घट जाती है जिससे एकाएक मौसम बदल जाता है, फूल खिल जाते हैं, बहार आ जाती है. हम उसी क्षण को अपनी रूह में उतार लेते हैं. फिर उन्हें कागज के पृष्ठों पर उतरने में कितनी देर लगती है? बस इन्हीं विचारों का निचोड़ आपकी लेखनी में मुझे मिलता है। मेरी शुभकामनाएं आपको। आप यूँ ही लिखती रहें.
“तकदीर हो आपकी मुट्ठी में, आपको विस्तृत आकाश मिले। ये लेखनी बने आपकी पूंजी, आपको निरंतर विकास मिले।”
(ये लिखी समीक्षा मेधावी जैन जी की किताबों से प्रेरित होकर लिखी हूं जो कि पूर्णतः स्वरचित मौलिक, अप्रकाशित है। मेरे स्वयं के भावों के साथ निःस्वार्थ प्रेम मेधावी जी के लिए है)
पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)