जाने कब से अंधकार रुपी निर्वात में भटक रहा था मैं
अनभिज्ञ, अंजान, भयभीत.
आशा- निराशा, उम्मीद-नाउम्मीदी
क्या होती है.
इन सबसे अचेत
मानो मैं था ही नहीं.
किन्तु कुछ तो था
जो केवल अंधकार देख पाता था
हालाँकि महसूसने को कुछ न था.
और तभी कहीं, बहुत दूर से
एक दिव्य संगीत की आहट.
पहली बार मैं चौंका
और मैंने अपना वजूद महसूसा
कि मैं कुछ तो हूँ.
धीरे-धीरे वह दिव्य संगीत
पास आना आरंभ हुआ
और यहीं से मैंने स्वयं को पाना.
अब वह संगीत प्रतिक्षण
मेरे कानों के भीतर बजता है
और प्रतिक्षण एक नए मैं से होता है
मेरा परिचय.
Have a blessed weekend spirituals!!!
Medhavi 🙂