एक डगमगाती हुई लौ
जो टिक न सकी
कभी बाहरी कारणों से
तो कभी भीतरी.
और इसलिए पथ प्रदर्शन भी
ठीक से न कर सकी.
आज अचानक
वर्षों के चिंतन के बाद
स्थिर मालूम पड़ती है.
और आश्चर्यजनक रुप से
इस स्थिरता के महसूसते ही
घोर अंधकार के बावजूद
आगे के पथ की एक साफ़ झलक
मुझे दिखती है.
जहाँ शान्ति है
परम संतुष्टि है
दिव्य आनंद है.
Blissful day supreme souls!!!
Medhavi 🙂