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A Sarcastic Poetry on Death

Hello friends,

Recently I’ve heard of a few deaths and also I have been to some uthaavanis. My observations have made me write this poetry. Nothing personal.

हालाँकि स्वयं का जन्म और मृत्यु तुम्हारे हाथ नहीं
किन्तु सुनो, अपनी मृत्यु की प्रार्थना लिस्ट में
ये कुछ इच्छाएँ भी शामिल कर लेना
क्या पता सुन ही ली जाएँ?

मरो, तो ज़रा देख कर मरना
वह सप्ताहांत होना चाहिए
ताकि लोग आएँ तो कुछ देर तो बैठें
हालाँकि वे तब भी चिकचिक करेंगे
कि क्या यार, वीकेण्ड ख़राब कर दिया
किन्तु तुम तो जानते ही हो
वीकडेज़ में वे और ज़्यादा किलसेंगे…

जाने का मौसम ज़रा ख़ुशगवार चुनना
अत्यधिक गर्मी में लोगों को बियर
और सर्दी में चाय की दरकार रहती है…

तेरह दिन बैठने का समय तो अब परिवार के पास भी नहीं
‘जिसने जाना था वह तो वापस आने से रहा
तब क्यों न व्यावहारिक रहा जाए’
का तर्क जायज़ है भाई…

और हाँ यदि बच्चे विदेश रहते हों
तो और सतर्क होकर मरना
तब, जब उनकी और उनके बच्चों की छुट्टियाँ हों
अन्यथा चुनाव तुम्हारा है
केवल तुम्हारी जायी औलाद ही आ पाएगी
बाकियों के तो काम-स्कूल इत्यादि रहेंगे न
समझा करो…

यदि तुम अपनी शर्तों पर जिए तो वैसे भी स्वार्थी कहलाओगे
और यदि दूसरों के लिए जिए, तो भी परखे ही जाओगे…

इतनी अधिक उम्मीद भी मत लगाना
कि तदोपरांत तुम्हारे गमन पर लोग आँसूँ बहाएँगे
सुकून की सांस लो तुम किसी को दुखी न छोड़ जाओगे
सो मित्र तर्क का ज़माना है
इसमें व्यथित हो मुँह क्या बनाना है…

Happy weekend
Medhavi 🙂

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