मैं स्वयं से प्रेम करती हूँ
अपनी सोहबत में प्रसन्न रहती हूँ.
अपने मन की दुविधाओं से जूझती
उहा-पोह में विचरती
स्वयं की सलाह मान लेती हूँ.
अपनी व्यस्त दिनचर्या में से
कुछ पल निकाल
दर्पण के आगे, स्वयं को निहार
मैं मुस्करा लेती हूँ.
जानती हूँ, उम्र बढ़ रही है
फिर भी अपनी गरिमा पर मैं मुग्ध होती हूँ.
जीवन में जो भी करती हूँ
अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती हूँ.
यदि परिणाम भिन्न रहें
तब भी रात्रि में चिंतामुक्त हो सोती हूँ.
हर हाल में प्रसन्न रहती हूँ
चूँकि मैं स्त्री हूँ
मैं धुरी हूँ.
Pleasant day pals!!!
Medhavi 🙂
1 Comment
anil jain
नारी…न अरी होवे कोई जिसका…कहलाये नारी वो ही…स्वम् के प्रति सजग रहकर…कर्तव्य निभाए —परिवार/देश/समाज के प्रति …स्वाभिमान न डिगा सके जिसका कोई….नारी कहलाये वो ही….सुंदर भाव पूर्ण प्रस्तुति…