लगभग दो महीने पहले एक शाम मिर्ज़ापुर से फ़ोन आया. फ़ोन पर दूसरी ओर श्रीमती पूजा गुप्ता जी की मधुर एवं सधी हुई आवाज़ थी जो मेरी लेखनी की भूरी भूरी प्रशंसा से युक्त थी. मैं अचंभित थी कि आख़िर मेरी पुस्तकें उन तक कैसे पहुंचीं. बातचीत के दौरान पता चला कि सभ्या प्रकाशन के…
